कट गया दिन ढली शाम शब आ गई
फिर ज़मीं अपने महवर से हटने लगी
चाँदनी करवटें फिर बदलने लगी
आहटों के सिसकते हुए शोर से
फिर मकाँ भर गया
ज़हर सपनों का पी कर
कोई आज की रात फिर मर गया!
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वो मोड़
अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो
वो बेवफ़ा है हमेशा ही दिल दुखाता है
रात को दिन से मिलाने की हवस थी हम को
जो होने वाला है अब उस की फ़िक्र क्या कीजे
एक और मौत
आँखों में तेरी देख रहा हूँ मैं अपनी शक्ल
है आज ये गिला कि अकेला है 'शहरयार'
तमाम ख़ल्क़-ए-ख़ुदा देख के ये हैराँ है
भटक गया कि मंज़िलों का वो सुराग़ पा गया
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं
देख दरिया को कि तुग़्यानी में है