कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
लेकिन वो फ़साना जो मिरे दिल पे रक़म है
महरूमी का एहसास मुझे किस लिए होता
हासिल है जो मुझ को कहाँ दुनिया को बहम है
या तुझ से बिछड़ने का नहीं हौसला मुझ में
या तेरे तग़ाफ़ुल में भी अंदाज़-ए-करम है
थोड़ी सी जगह मुझ को भी मिल जाए कहीं पर
वहशत तिरे कूचे में मिरे शहर से कम है
ऐ हम-सफ़रो टूटे न साँसों का तसलसुल
ये क़ाफ़िला-ए-शौक़ बहुत तेज़-क़दम है
(432) Peoples Rate This