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जहाँ पे तेरी कमी भी न हो सके महसूस - शहरयार कविता - Darsaal

जहाँ पे तेरी कमी भी न हो सके महसूस

जहाँ पे तेरी कमी भी न हो सके महसूस

तलाश ही रही आँखों को ऐसे मंज़र की

हमें तो ख़ुद नहीं मालूम क्या किसी से कहें

कि तुझ से मिलने की कोशिश न क्यूँ बिछड़ कर की

मगर ये ज़ौक़-ए-परस्तिश कि अब भी तिश्ना है

जबीं को चूम चुके एक एक पत्थर की

कहाँ पे दफ़्न वो परछाइयाँ करें यारो

जो ताब ला न सकीं रौशनी के ख़ंजर की

हर एक गुल को है इश्क़-ए-सुमूम का सौदा

हर एक शाख़ यहाँ मो'तक़िद है सरसर की

जिधर अँधेरा है तन्हाई है उदासी है

सफ़र की हम ने वही सम्त क्यूँ मुक़र्रर की

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In Hindi By Famous Poet Shahryar. is written by Shahryar. Complete Poem in Hindi by Shahryar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.