हज़ार बार मिटी और पाएमाल हुई है
हज़ार बार मिटी और पाएमाल हुई है
हमारी ज़िंदगी तब जा के बे-मिसाल हुई है
इसी सबब से तो परछाईं अपने साथ नहीं है
सऊबत-ए-सफ़र-ए-शौक़ से निढाल हुई है
सुकून फिर भी तो वहशत-सरा-ए-दिल में नहीं है
निगाह-ए-यार अगरचे शरीक-ए-हाल हुई है
ख़ुशी के लम्हे तो जूँ-तूँ गुज़र गए हैं यहाँ पर
बस एक साअत-ए-ग़म काटनी मुहाल हुई है
लकीर नूर की जो आसमान-ए-दिल पे बनी है
अँधेरी रात का हमला हुआ तो ढाल हुई है
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