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अक्स को क़ैद कि परछाईं को ज़ंजीर करें - शहरयार कविता - Darsaal

अक्स को क़ैद कि परछाईं को ज़ंजीर करें

अक्स को क़ैद कि परछाईं को ज़ंजीर करें

साअत-ए-हिज्र तुझे कैसे जहाँगीर करें

पाँव के नीचे कोई शय है ज़मीं की सूरत

चंद दिन और इसी वहम की तश्हीर करें

शहर-ए-उम्मीद हक़ीक़त में नहीं बन सकता

तो चलो उस को तसव्वुर ही में ता'मीर करें

अब तो ले दे के यही काम है इन आँखों का

जिन को देखा नहीं उन ख़्वाबों की ता'बीर करें

हम में जुरअत की कमी कल की तरह आज भी है

तिश्नगी किस के लबों पर तुझे तहरीर करें

उम्र का बाक़ी सफ़र करना है इस शर्त के साथ

धूप देखें तो इसे साए से ता'बीर करें

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In Hindi By Famous Poet Shahryar. is written by Shahryar. Complete Poem in Hindi by Shahryar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.