शहरयार कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शहरयार (page 2)
नाम | शहरयार |
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अंग्रेज़ी नाम | Shahryar |
जन्म की तारीख | 1936 |
मौत की तिथि | 2012 |
जन्म स्थान | Aligarh |
सारी दुनिया के मसाइल यूँ मुझे दरपेश हैं
सफ़र का नश्शा चढ़ा है तो क्यूँ उतर जाए
सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का
रात को दिन से मिलाने की हवस थी हम को
पिछले सफ़र में जो कुछ बीता बीत गया यारो लेकिन
पल भर में कैसे लोग बदल जाते हैं यहाँ
पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
नज़राना तेरे हुस्न को क्या दें कि अपने पास
नज़र जो कोई भी तुझ सा हसीं नहीं आता
नहीं है मुझ से तअ'ल्लुक़ कोई तो ऐसा क्यूँ
न ख़ुश-गुमान हो इस पर तू ऐ दिल-ए-सादा
मुझ को ले डूबा तिरा शहर में यकता होना
मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर
मैं सोचता हूँ मगर याद कुछ नहीं आता
मैं अकेला सही मगर कब तक
लोग सर फोड़ कर भी देख चुके
क्यूँ आज उस का ज़िक्र मुझे ख़ुश न कर सका
क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
कोई नया मकीन नहीं आया तो हैरत क्या
कितनी तब्दील हुइ किस लिए तब्दील हुइ
किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया
ख़जिल चराग़ों से अहल-ए-वफ़ा को होना है
कौन सी बात है जो उस में नहीं
कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
कहिए तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएँ
कहाँ तक वक़्त के दरिया को हम ठहरा हुआ देखें
काग़ज़ की कश्तियाँ भी बहुत काम आएँगी
जुस्तुजू जिस की थी उस को तो न पाया हम ने
जो होने वाला है अब उस की फ़िक्र क्या कीजे
जो चाहती दुनिया है वो मुझ से नहीं होगा