शहरयार कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शहरयार
नाम | शहरयार |
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अंग्रेज़ी नाम | Shahryar |
जन्म की तारीख | 1936 |
मौत की तिथि | 2012 |
जन्म स्थान | Aligarh |
ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो थी नहीं कुछ कम है
ज़ख़्मों को रफ़ू कर लें दिल शाद करें फिर से
ज़बाँ मिली भी तो किस वक़्त बे-ज़बानों को
ये क़ाफ़िले यादों के कहीं खो गए होते
ये क्या जगह है दोस्तो ये कौन सा दयार है
ये क्या है मोहब्बत में तो ऐसा नहीं होता
ये जब है कि इक ख़्वाब से रिश्ता है हमारा
ये इक शजर कि जिस पे न काँटा न फूल है
या तेरे अलावा भी किसी शय की तलब है
या मैं सोचूँ कुछ भी न उस के बारे में
वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे
वक़्त को क्यूँ भला बुरा कहिए
उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते
उम्र-सफ़र जारी है बस ये खेल देखने को
उम्र का लम्बा हिस्सा कर के दानाई के नाम
उम्र का बाक़ी सफ़र करना है इस शर्त के साथ
उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए
तुझ से मिल कर भी न तन्हाई मिटेगी मेरी
तुझ से बिछड़े हैं तो अब किस से मिलाती है हमें
तुझे भूल गया कभी याद नहीं करता तुझ को
तू कहाँ है तुझ से इक निस्बत थी मेरी ज़ात को
तेरे वादे को कभी झूट नहीं समझूँगा
तिरा ख़याल भी तेरी तरह सितमगर है
तन्हाई की ये कौन सी मंज़िल है रफ़ीक़ो
सियाह रात नहीं लेती नाम ढलने का
सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है
शिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है
शाम होते ही खुली सड़कों की याद आती है
शहर-ए-उम्मीद हक़ीक़त में नहीं बन सकता
शदीद प्यास थी फिर भी छुआ न पानी को