मिरे अलावा सभी लोग अब ये मानते हैं
ग़लत नहीं थी मिरी राय उस के बारे में
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लौह-ए-अय्याम
किताब गुमराह कर रही है
फ़क़त ज़मान ओ मकाँ में ज़रा सा फ़र्क़ आया
ऐसा हो कि ना-मौऊद हो
कार-ए-बेहूदा
ग़ुबार-ए-दर्द में राह-ए-नजात ऐसा ही
बस सलीक़े से ज़रा बर्बाद होना है तुम्हें
तुम अपनी सब्ज़ आँखें बंद कर लो
बदल जाएगा सब कुछ ये तमाशा भी नहीं होगा
जब तुम मुझ से मिलने आओ
ब-राह-ए-रास्त नहीं फिर भी राब्ता सा है
ख़ला सा ठहरा हुआ है ये चार-सू कैसा