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कार-ए-बेहूदा - शहराम सर्मदी कविता - Darsaal

कार-ए-बेहूदा

अपने होने

और न होने में

ख़ुशी की ग़म की इत्मीनान की तहक़ीक़

बे-मसरफ़ है

और इक सई-ए-ला-हासिल के सिवा कुछ भी नहीं

ये ज़िंदगी

इक जंग-ए-तहमीली है

और मैं

बे-नतीजा जंग का सर-बाज़ हों कोई

जो बेहूदा सवालों से

अज़ल से बर-सर-ए-पैकार

अबद-आसार ना-पैदा

माइल

तार-ए-अबरेशम

वजूद

इक किर्म की मानिंद

ग़ाएब हो रहा है दम-ब-दम

ये भी ग़नीमत था मगर

रेशम के ख़्वाहाँ ही कहाँ बाक़ी

कभी ये सोचता हूँ मैं

किसी गोशे में बैठूँ

और रुजूअ' इक मर्द-ए-कामिल से करूँ

लेकिन

मुझे भी तो ये पहले जानना होगा

तिफ़्ल-ए-अक़्ल

क्यूँ अज़-बल्ख़ ता-ब-क़ौनिया

यूँ ख़्वाब में डूबा रहा

या फिर

इसी एक याद को उनवान दे दूँ ज़ीस्त का

तो नौ-दमीदा वो कली

शामिल हुई या की गई

जो ज़िंदगी में

जिस की ख़ुश्बू ने मिरे घर को महक से भर दिया

तूती-ए-ख़ुश-रंग-ओ-इल्हाँ की चहक से भर दिया

मैं इक मुहक़क़िक़ भी रहा हूँ

हफ़्त-साला दौरा-ए-तहक़ीक़ का

हासिल यही है

सर-ब-ज़ानू दम-ब-ख़ुद हूँ

आख़िरश सादिक़-हिदायत

ख़ुद-कुशी से चाहता क्या था

नतीजा सिफ़्र है

ये कार-ए-बेहूदा

यूँही होता रहा है

बे-सबब होता रहेगा

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In Hindi By Famous Poet Shahram Sarmadi. is written by Shahram Sarmadi. Complete Poem in Hindi by Shahram Sarmadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.