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अपना अपना दुख - शहराम सर्मदी कविता - Darsaal

अपना अपना दुख

बचपन से

अम्माँ से सुना करते थे

'पांचों उँगलियाँ एक बराबर नहीं होतीं'

लेकिन पिछले कुछ बरसों से

अम्माँ मंझली उँगली को

खींच रही हैं

कहती हैं:

'उस को कैसे छोड़ूँ

पीछे रह जाएगी'

मंझली उँगली भी तो आख़िर जानती होगी

'पांचों उँगलियाँ एक बराबर नहीं होतीं'

पीछे रह जाने का दुख तो मंझली उँगली सह जाएगी

लेकिन छोटी उँगली?

जिसे दबा कर

अम्माँ मंझली उँगली खींच रही हैं

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In Hindi By Famous Poet Shahram Sarmadi. is written by Shahram Sarmadi. Complete Poem in Hindi by Shahram Sarmadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.