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ख़ला सा ठहरा हुआ है ये चार-सू कैसा - शहराम सर्मदी कविता - Darsaal

ख़ला सा ठहरा हुआ है ये चार-सू कैसा

ख़ला सा ठहरा हुआ है ये चार-सू कैसा

उजाड़ हो गया इक शहर-ए-रंग-ओ-बू कैसा

तमाम हल्क़ा-ए-ख़्वाब-ओ-ख़याल हैराँ है

सवाद-ए-चश्म में आया ये माह-रू कैसा

कभी जो फ़ुर्सत-ए-यक-लम्हा भी मिले तो देख

कि दश्त-ए-याद में बिखरा पड़ा है तू कैसा

अगरचे शोरा ही शोरा सब इलाक़ा-ए-दिल

तुझे रक्खा है मगर सब्ज़ ओ पुर-नुमू कैसा

सरा-ए-दिल में कई दिन से शाम होते ही

धुआँ सा फैलने लगता है कू-ब-कू कैसा

ज़रा जो सोचें तो ये मसअला भी हल हो जाए

कि होना चाहिए अब रंग-ए-आरज़ू कैसा

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In Hindi By Famous Poet Shahram Sarmadi. is written by Shahram Sarmadi. Complete Poem in Hindi by Shahram Sarmadi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.