फ़न के शजर पर फल जो लगे हैं
उन में ज़्यादा तर कच्चे हैं
कैसा ये कल-जुग आया है
लोग पड़ोसी से डरते हैं
झूट है सब आए थे फ़सादी
ये तो करिश्मे वर्दी के हैं
कितने दानिश-वर हो भय्या
जानने वाले जान रहे हैं
चीख़ के लहजा बोल रहा है
शेर 'शुहूद' आफ़ाक़ी के हैं
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बरसात का उधर है दिमाग़ आसमान पर
आदाब ज़िंदगी से बहुत दूर हो गया
साहिल पे ये टूटे हुए तख़्ते जो पड़े हैं