किसी से हाथ किसी से नज़र मिलाते हुए
किसी से हाथ किसी से नज़र मिलाते हुए
मैं बुझ रही हूँ रवा-दारियाँ निभाते हुए
किसी को मेरे दुखों की ख़बर भी कैसे हो
कि मैं हर एक से मिलती हूँ मुस्कुराते हुए
अजीब ख़ौफ़ है अंदर की ख़ामुशी का मुझे
कि रास्तों से गुज़रती हूँ गुनगुनाते हुए
कहाँ तक और मैं सिमटूँ कि उम्र बीत गई
दिल ओ नज़र के तक़ाज़ों से मुँह छुपाते हुए
नहीं मलाल कि मैं राएगाँ हुई हूँ 'नूर'
बदन की ख़ाक से दीवार-ओ-दर बनाते हुए
(687) Peoples Rate This