पाप

बुरा न मानो

नमाज़ें अब भी यहीं पड़ी हैं

पे सज्दा-गाहें उठा के जाने किधर चले थे

वो सुब्ह तुम को भी याद होगी

अलग थे घर और अलाहिदा चूल्हे

तुम्हारे परचम का रंग अलग था

वतन तुम्हारा नया नया था

सभी तो बाँटा था आधा आधा

मगर पड़ी हैं वहाँ पे अब तक

हमारी राधा की एक पायल

हमारे कृष्णा की एक बंसी

प 'हीर' कैसे उठा के दे दें

कहाँ से लाएँ तुम्हारा राँझा

कि हम से पागल

हिसाब रखते नहीं दिनों का

हमें तो ये भी पता नहीं है

कि आरयाई से बाबरी हम बने तो कैसे

हमें तो शंख और अज़ाँ है यकसाँ

हमारी तारीख़ के कितने सफ़्हे

चुराए तुम ने?

कहाँ कहाँ से निशाँ हमारे

मिटाए तुम ने?

हमारी होली तुम्हारे बिन है उदास कितनी

तुम्हें पता क्या

हमारी ईदों को तुम से मिलने की प्यास कितनी

कहाँ चले थे उठा के मिम्बर

कहाँ सजाई दुकान तुम ने

कहाँ पे बेचे हैं माल कितने

कहो मुनाफ़ा कमाया कितना

हमारे जैसे

तुम्हारे जैसे

ख़ुदा के बंदे

जो अपने हिस्से का पानी

खोदें कुआँ तो पाएँ

जो अपने तन को धुआँ बनाएँ तो रोटी खाएँ

हमें लकीरों के खेल से क्या

हमें तिजारत से वास्ता कब

जिन्हें था सूद ओ ज़ियाँ से मतलब

वो कारोबार-ए-जहाँ से रुख़्सत

प आग अब भी भड़क रही है

चलो बुज़ुर्गों का पाप धोएँ

हमारे मंदिर सँभालो तुम सब

तुम्हारी मस्जिद के हम निगहबाँ

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In Hindi By Famous Poet Shahnaz Nabi. is written by Shahnaz Nabi. Complete Poem in Hindi by Shahnaz Nabi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.