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नए युग का ख़्वाब - शहनाज़ नबी कविता - Darsaal

नए युग का ख़्वाब

बद-ख़्वाबी से बचने के थे कैसे कैसे नुस्ख़े

बिस्मिल्लाह

फिर पहला कलिमा दूसरा कलिमा चारों क़ुल

और दाहनी करवट सोना

नींद तो अब आती है कम कम और अगर आ भी जाए तो

ख़्वाब कहाँ अच्छे आते हैं

गहरा दरिया डूबती नाव टूटे पुल के उखड़े तख़्ते

रौशन-दान पे काले शीशे

दीवारों पर ख़ून के छींटे

आग धुआँ बेचैन कराहें

इक करवट पर सोते सोते

दाहिना अंग बे-जान हुआ है

इक इक कलिमा इक इक क़ुल

क्या जाने कितनी बार पढ़ा है

ये बद-ख़्वाबी कब जाएगी

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In Hindi By Famous Poet Shahnaz Nabi. is written by Shahnaz Nabi. Complete Poem in Hindi by Shahnaz Nabi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.