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अजीब ख़ौफ़ है जज़्बों की बे-लिबासी का - शहनाज़ नबी कविता - Darsaal

अजीब ख़ौफ़ है जज़्बों की बे-लिबासी का

अजीब ख़ौफ़ है जज़्बों की बे-लिबासी का

जवाज़ पेश करूँ क्या मैं इस उदासी का

ये दुख ज़रूरी है रिश्ते ख़ला-पज़ीर हुए

अदा हुआ है मगर क़र्ज़ ख़ुद-शनासी का

न ख़्वाब और न ख़ौफ़-ए-शिकस्त-ए-ख़्वाब रहा

सबब यही है निगाहों की बे-हरासी का

कोई है अपने सिवा भी मसाफ़त-ए-शब में

सहर जो हो तो खुले राज़ ख़ुश-क़यासी का

वो सैल-ए-अश्क सिमटने लगा है शे'रों में

जिसे मिला न कोई रास्ता निकासी का

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In Hindi By Famous Poet Shahnaz Nabi. is written by Shahnaz Nabi. Complete Poem in Hindi by Shahnaz Nabi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.