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मिरी तरह से कहीं ख़ाक छानता होगा - शहनाज़ मुज़म्मिल कविता - Darsaal

मिरी तरह से कहीं ख़ाक छानता होगा

मिरी तरह से कहीं ख़ाक छानता होगा

वो अपनी ज़ात के सहरा में खो गया होगा

शरार राख में बाक़ी रहा नहीं कोई

चराग़ दिल का मिरे जल के बुझ गया होगा

जो मेरी झील सी आँखों में डूब डूब गया

सितारा-वार कहीं ख़ुद को ढूँढता होगा

फिर आज क़र्या-ए-जाँ पर अज़ाब उतरे हैं

किसी ने फिर नया तरकश सजा लिया होगा

छलकते जाते हैं मंज़र तमाम आँखों से

दरीचा याद का शायद कोई खुला होगा

समाअ'तों पे मिरी आज कैसी दस्तक है

कोई हवा से पता मेरा पूछता होगा

वो शख़्स मेरा शनासा नहीं तो कौन है वो

किसी को ढूँढता रस्ता भटक गया होगा

नफ़स नफ़स में कोई आश्कार होता है

जो मेरे दिल के क़रीं है मिरा ख़ुदा होगा

तिरी तलाश में वो मुंतशिर हुआ ऐसा

सुराग़ अपना भी उस को न मिल सका होगा

बदलती रुत में वो कैसा बदल गया 'शहनाज़'

बिछड़ के मुझ से कभी वो भी सोचता होगा

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In Hindi By Famous Poet Shahnaz Muzammil. is written by Shahnaz Muzammil. Complete Poem in Hindi by Shahnaz Muzammil. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.