ये सूखे पत्ते नहीं ज़माने पे तब्सिरे हैं
शजर ने लिख कर बिखेर दी हैं फ़ज़ा में बातें
Habib Jalib
Allama Iqbal
Rahat Indori
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Anwar Masood
Jaun Eliya
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''जो भी आवे है वो नज़दीक ही बैठे है तिरे''
वो मिरे कासे में यादें छोड़ कर यूँ चल दिया
तेरी तख़्लीक़ तिरा रंग हवाला था मिरा
मोहब्बत से तिरी यादें जगा कर सो रहा हूँ
रौशन आईनों में झूटे अक्स उतार गया
उलझा उस की दीद में
मेज़ पे चेहरा ज़ुल्फ़ें काग़ज़ पर
चेहरों को पैरों से कुचल कर आगे बढ़ जाना
दरीचा आइने पर खुल रहा है
सभी रास्ते तिरे नाम के सभी फ़ासले तिरे नाम के
सहर होते ही जैसे रेत भर जाती है साँसों में