सहर होते ही जैसे रेत भर जाती है साँसों में
नसीम-ए-हिज्र तेरे ज़ाइक़े अच्छे नहीं लगते
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सभी रास्ते तिरे नाम के सभी फ़ासले तिरे नाम के
शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की दवा मैं क्या करता
आओ फिर मिल जाएँ सब बातें पुरानी छोड़ कर
सूरज तिरी दहलीज़ में अटका हुआ निकला
जब आफ़्ताब से चेहरा छुपा रही थी हवा
वो मिरे कासे में यादें छोड़ कर यूँ चल दिया
मिरे ख़ुदा कोई छाँव कोई ज़मीं कोई घर
''जो भी आवे है वो नज़दीक ही बैठे है तिरे''
तितलियाँ फूल में क्या ढूँढती रहती हैं सदा
पहले जैसा नहीं रहा हूँ
मेज़ पे चेहरा ज़ुल्फ़ें काग़ज़ पर