''जो भी आवे है वो नज़दीक ही बैठे है तिरे''
शीशा-ए-चश्म में किस किस को उतारा हुआ है
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Anwar Masood
Rahat Indori
Parveen Shakir
Gulzar
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(483) Peoples Rate This
किसी बंजर तख़य्युल पर किसी बे-आब रिश्ते में
सहर होते ही जैसे रेत भर जाती है साँसों में
उस की आँखों में मोहब्बत का गुमाँ तक नहीं आज
आओ फिर मिल जाएँ सब बातें पुरानी छोड़ कर
हर किसी ख़्वाब के चेहरे पे लिखूँ नाम तिरा
वो मिरे कासे में यादें छोड़ कर यूँ चल दिया
मेज़ पे चेहरा ज़ुल्फ़ें काग़ज़ पर
दरीचा आइने पर खुल रहा है
उलझा उस की दीद में
दिल भी दाग़-ए-नक़्श-ए-कुहन से बुझा हुआ था
रौशन आईनों में झूटे अक्स उतार गया
पहले जैसा नहीं रहा हूँ