चेहरों को पैरों से कुचल कर आगे बढ़ जाना
जीत इसी को कहते हैं तो फिर मैं हार गया
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मोहब्बत से तिरी यादें जगा कर सो रहा हूँ
मेज़ पे चेहरा ज़ुल्फ़ें काग़ज़ पर
मिसरे के वस्त में खड़ा हूँ
जब आफ़्ताब से चेहरा छुपा रही थी हवा
सभी रास्ते तिरे नाम के सभी फ़ासले तिरे नाम के
दरीचा आइने पर खुल रहा है
सूरज तिरी दहलीज़ में अटका हुआ निकला
ये सूखे पत्ते नहीं ज़माने पे तब्सिरे हैं
हर किसी ख़्वाब के चेहरे पे लिखूँ नाम तिरा
सहर होते ही जैसे रेत भर जाती है साँसों में
वो मिरे कासे में यादें छोड़ कर यूँ चल दिया
उस की आँखों में मोहब्बत का गुमाँ तक नहीं आज