पहले जैसा नहीं रहा हूँ
पहले जैसा नहीं रहा हूँ
मैं अंदर तक टूट गया हूँ
जैसे काग़ज़ फट जाता है
दो टुकड़ों में पड़ा हुआ हूँ
दोस्त मिरा क्यूँ साथ निभाते
जब मैं उन को छोड़ चुका हूँ
कितना छोटा सा लगता हूँ
दूर से ख़ुद को देख रहा हूँ
शीशे की दीवारों वाले
इक कमरे में क़ैद पड़ा हूँ
लोगों के ज़ाहिर बातिन को
देखता हूँ हँसता रहता हूँ
तस्वीरों का क़हत पड़ा है
और मैं रंग बहा बैठा हूँ
कोई मेरा हाल न पूछे
मैं जैसा भी हूँ अच्छा हूँ
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