हर किसी ख़्वाब के चेहरे पे लिखूँ नाम तिरा
हर किसी ख़्वाब के चेहरे पे लिखूँ नाम तिरा
मैं उसे अपना हुनर समझूँ कि इनआ'म तिरा
तितलियाँ फूल में क्या ढूँढती रहती हैं सदा
क्या कहें बाद-ए-सबा रख गई पैग़ाम तिरा
जिस तरह रंग-ए-शफ़क़ झील में घुल जाता है
अक्स-ए-लब ऐसे उतरता है तह-ए-जाम तिरा
रात आएगी तो दिखलाएगा कुछ और ही रंग
वो जो दिन भर तो पराया लगा और शाम तिरा
फ़क़त इस सोच में हाथ उठते नहीं वक़्त-ए-दुआ
मैं भला किस तरह समझाऊँ तुझे काम तिरा
ताक़चे गोशा-ए-दिल फ़िक्र-ओ-अमल छान चुके
किसी हालत में भी मिलता नहीं इस्लाम तिरा
शम्अ' बुझती है तो दुनिया में सहर होती है
ऐ सुख़न-वर तिरा आग़ाज़ है अंजाम तिरा
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