Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_3c45f29ce61a6ab2daf0c97984159654, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
सारे पत्थर और आईने एक से लगते हैं - शाहिदा हसन कविता - Darsaal

सारे पत्थर और आईने एक से लगते हैं

सारे पत्थर और आईने एक से लगते हैं

एक सी हालत रखने वाले एक से लगते हैं

यूँ लगता है जैसे फिर कुछ होने वाला है

कुछ होने से पहले लम्हे एक से लगते हैं

पहले कोई राह ज़ियादा लम्बी लगती थी

अब तो घर के सब ही रस्ते एक से लगते हैं

कैसे पहचानूँ मैं इन में कौन से हैं मिरे लोग

रात की आँधी में सब चेहरे एक से लगते हैं

किसी किसी को प्यास बुझाने का गुन आता है

वर्ना ये मिट्टी के कूज़े एक से लगते हैं

अपनी कोख की गर्मी में हों या उस से कुछ दूर

माँ को अपने सारे बच्चे एक से लगते हैं

(601) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Shahida Hasan. is written by Shahida Hasan. Complete Poem in Hindi by Shahida Hasan. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.