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मिले जो नाक़ा-ए-वहशत को सारबाँ कोई - शाहिदा हसन कविता - Darsaal

मिले जो नाक़ा-ए-वहशत को सारबाँ कोई

मिले जो नाक़ा-ए-वहशत को सारबाँ कोई

दिखाऊँ क़ाफ़िला-ए-ख़्वाब का निशाँ कोई

ख़मोशियों ही से मशरूत है जनम मेरा

सो मेरी राख से उठता नहीं धुआँ कोई

ख़सारा और ही होता था बे-घरी का मगर

मुझे मकान में रखता है बे-मकाँ कोई

किसी से होने न होने के दरमियाँ हो जो रब्त

वहीं तो रब्त में आता है दरमियाँ कोई

सुराग़ दे के मुझे मेरी बे-ज़बानी का

मुझी में आन बसा मुझ सा बे-ज़बाँ कोई

तू मेरे अक्स को मीज़ान-ए-आइना में न तोल

उठा रहा है अभी मेरी किर्चियाँ कोई

तिरे ख़याल की आबादियाँ छुपाती हूँ

कि मुझ से छीन न ले मेरी बस्तियाँ कोई

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In Hindi By Famous Poet Shahida Hasan. is written by Shahida Hasan. Complete Poem in Hindi by Shahida Hasan. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.