मौज आए कोई हल्क़ा-ए-गिर्दाब की सूरत
मौज आए कोई हल्क़ा-ए-गिर्दाब की सूरत
मैं रेत पे हूँ माही-ए-बे-आब की सूरत
सदियों से सराबों में घिरा सोच रहा हूँ
बन जाए कहीं सब्ज़ा-ए-शादाब की सूरत
आसार नहीं कोई मगर दिल को यक़ीं है
घर होगा कभी वादी-ए-महताब की सूरत
है सोच का तेशा तो निकल आएगी इक दिन
पत्थर के हिसारों में कोई बाब की सूरत
पहचान मुझे भी कि ज़मीं शक्ल है मेरी
मैं सिंध का चेहरा हूँ न पंजाब की सूरत
(434) Peoples Rate This