ज़िंदगी मेरी हुई है फिर निढाल
ज़िंदगी मेरी हुई है फिर निढाल
ये उमीद-ए-बे-सबाती का कमाल
जब चली ऐ ज़ीस्त मुस्तक़बिल की बात
बन गया हूँ आप ख़ुद अपना सवाल
शेर कह कर पास रख लेता हूँ मैं
फ़न की दुनिया में न हो फिर क़ील-ओ-क़ाल
पूछना क्या शहर-ए-संग-ओ-ख़िश्त से
रंग बदला है ज़माने की मिसाल
मैं कि हर शेर में 'शाहिद' नहीं
सिर्फ़ पेश-ए-लफ़्ज़ है मेरा ख़याल
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