तुझ को देखा नहीं महसूस किया है मैं ने
आ किसी दिन मिरे एहसास को पैकर कर दे
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उजले मोती हम ने माँगे थे किसी से थाल भर
ख़ौफ़ से अब यूँ न अपने घर का दरवाज़ा लगा
पहले तो छीन ली मिरी आँखों की रौशनी
मीनारों से ऊपर निकला दीवारों से पार हुआ
मजमा' मिरे हिसार में सैलानियों का है
रोने से और लुत्फ़ वफ़ाओं का बढ़ गया
बुझती हुई सी एक शबीह ज़ेहन में लिए
ऐ ख़ुदा रेत के सहरा को समुंदर कर दे
ऐसे भी कुछ ग़म होते हैं
हर इरादा मुज़्महिल हर फ़ैसला कमज़ोर था
न जाने क्या हुए अतराफ़ देखने वाले
आँसुओं में ज़रा सी हँसी घोल कर