बुझती हुई सी एक शबीह ज़ेहन में लिए
मिटती हुई सितारों की सफ़ देखते रहे
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Gulzar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Anwar Masood
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(563) Peoples Rate This
इक सब्ज़ रंग बाग़ दिखाया गया मुझे
समुंदरों में अगर ख़लफ़िशार-ए-आब न हो
मजमा' मिरे हिसार में सैलानियों का है
तारीकियों का हम थे हदफ़ देखते रहे
ख़ौफ़ से अब यूँ न अपने घर का दरवाज़ा लगा
गँवाए बैठे हैं आँखों की रौशनी 'शाहिद'
ज़ेहन में लगता है जब ख़ुश-रंग लफ़्ज़ों का हुजूम
और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन
वार हुआ कुछ इतना गहरा पानी का
तुझ को देखा नहीं महसूस किया है मैं ने
ऐसे भी कुछ ग़म होते हैं