रंग बे-रंग हुआ डूब गईं आवाज़ें
रेत ही रेत है अब लाश उठाई जाए
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Gulzar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Rahat Indori
Parveen Shakir
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रग रग में मेरी फैल गया है ये कैसा ज़हर
अजीब लोग
हाशिए पर कुछ हक़ीक़त कुछ फ़साना ख़्वाब का
एक लम्हा
रात ऐसी कि कभी जिस का सवेरा न हुआ
हर दर-ओ-दीवार पे लर्ज़ां कोई पैकर लगे
ख़ूँ का सैलाब था जो सर से अभी गुज़रा है
बाम-ओ-दर टूट गए बह गया पानी कितना
वक़्फ़ा
ग़म की तहज़ीब अज़िय्यत का क़रीना सीखें
भटक रही है अंधेरों में आँख देखे क्या
कश्ती रवाँ-दवाँ थी समुंदर खुला हुआ