Ghazals of Shahid Mahuli
नाम | शाहिद माहुली |
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अंग्रेज़ी नाम | Shahid Mahuli |
जन्म की तारीख | 1943 |
रग रग में मेरी फैल गया है ये कैसा ज़हर
रात ऐसी कि कभी जिस का सवेरा न हुआ
कुछ दर्द बढ़ा है तो मुदावा भी हुआ है
कश्ती रवाँ-दवाँ थी समुंदर खुला हुआ
कश्ती रवाँ-दवाँ थी समुंदर खुला हुआ
हाशिए पर कुछ हक़ीक़त कुछ फ़साना ख़्वाब का
हर मरहले से यूँ तो गुज़र जाएगी ये शाम
हर दर-ओ-दीवार पे लर्ज़ां कोई पैकर लगे
ग़म की तहज़ीब अज़िय्यत का क़रीना सीखें
ग़म की तहज़ीब अज़िय्यत का क़रीना सीखें
बुझे बुझे से चराग़ों से सिलसिला पाया
बू-ए-पैराहन-ए-सदा आए
भटक रही है अंधेरों में आँख देखे क्या
बाम-ओ-दर टूट गए बह गया पानी कितना