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दूर सहरा में जहाँ धूप शजर रखती है - शाहिद लतीफ़ कविता - Darsaal

दूर सहरा में जहाँ धूप शजर रखती है

दूर सहरा में जहाँ धूप शजर रखती है

आँख क्या शय है कहाँ जा के नज़र रखती है

और कुछ रोज़ अभी सूर न फूँका जाए

उस के दरबार में दुनिया अभी सर रखती है

लोग मंज़िल पे बहुत ख़ुश हैं मगर मंज़िल भी

लम्हा लम्हा पस-ए-इम्कान-ए-सफ़र रखती है

आओ उस शख़्स की रूदाद सुनें ग़ौर करें

सुर्ख़-रूई भी जिसे ख़ाक-बसर रखती है

ये ज़ेहानत जो विरासत की अता है 'शाहिद'

कोई दीवार उठाती है तो दर रखती है

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In Hindi By Famous Poet Shahid Latif. is written by Shahid Latif. Complete Poem in Hindi by Shahid Latif. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.