नन्हा सा दिया है कि तह-ए-आब है रौशन
नन्हा सा दिया है कि तह-ए-आब है रौशन
बुझती हुई आँखों में कोई ख़्वाब है रौशन
सुनसान जज़ीरे में चमकता हुआ तारा
दिल है कि कोई कश्ती-ए-शब-ताब है रौशन
दहशत के फ़रिश्ते हैं फ़सीलों पे हवा की
और चारों तरफ़ शहर के सैलाब है रौशन
मैं डूबता जाता हूँ तिरी मौज-ए-बदन में
यूँ रक़्स में किरनें हैं कि गिर्दाब है रौशन
हाँ जिस्म के इस क़र्या-ए-बे-नूर के अंदर
अब भी वो तिरे लम्स का महताब है रौशन
मैं ढूँढता फिरता हूँ जिसे बाम-ए-फ़लक पर
वो चाँद सर-ए-हल्क़ा-ए-अहबाब है रौशन
'शाहिद' कि जो वो ख़ाक-नशीं महरम-ए-जाँ है
सज्दों से अभी उस के ये मेहराब है रौशन
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