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कूज़ा-ए-दर्द में ख़ुशियों के समुंदर रख दे - शाहिद कमाल कविता - Darsaal

कूज़ा-ए-दर्द में ख़ुशियों के समुंदर रख दे

कूज़ा-ए-दर्द में ख़ुशियों के समुंदर रख दे

अपने होंटों को मिरे ज़ख़्म के ऊपर रख दे

इतनी वहशत है कि सीने में उलझता है ये दिल

ऐ शब-ए-ग़म तू मिरे सीने पे पत्थर रख दे

सोचता क्या है उसे भी मिरे सीने में उतार

तुझ से ये हो नहीं सकता है तो ख़ंजर रख दे

फिर कोई मुझ को मिरी क़ैद से आज़ाद करे

मेरे अंदर से मुझे खींच के बाहर रख दे

जल रहा है जो मिरे ख़ाना-ए-जाँ के अंदर

इस दिए को भी कोई ताक़-ए-हवा पर रख दे

ऐ सबा दे तू मिरे सोख़्ता-जानों को ख़िराज

उन की तुर्बत पे ही कुछ बर्ग-ए-गुल-ए-तर रख दे

मुर्दा अहराफ़ भी करते हैं तकल्लुम 'शाहिद'

अपना कुछ ख़ून-ए-जिगर लफ़्ज़ के अंदर रख दे

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In Hindi By Famous Poet Shahid Kamal. is written by Shahid Kamal. Complete Poem in Hindi by Shahid Kamal. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.