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इस अरसा-ए-महशर से गुज़र क्यूँ नहीं जाते - शाहिद कमाल कविता - Darsaal

इस अरसा-ए-महशर से गुज़र क्यूँ नहीं जाते

इस अरसा-ए-महशर से गुज़र क्यूँ नहीं जाते

जीने की तमन्ना है तो मर क्यूँ नहीं जाते

ऐ शहर-ए-ख़राबात के आशुफ़्ता-मिज़ाजों

जब टूट चुके हो तो बिखर क्यूँ नहीं जाते

इस दर्द की शिद्दत भी नुमू-ख़ेज़ बहुत है

जो ज़ख़्म हैं सीने में वो भर क्यूँ नहीं जाते

हम मोतकिफ़-ए-दश्त-ए-अज़िय्यत तो नहीं हैं

पैरों से मसाफ़त के भँवर क्यूँ नहीं जाते

जब आए हैं मक़्तल में तो क्या लौट के जाना

अब अपने लहू में ही निखर क्यूँ नहीं जाते

जब डूब के मरना है तो क्या सोच रहे हो

इन झील सी आँखों में उतर क्यूँ नहीं जाते

ये भी कोई ज़िद है कि ये 'शाहिद' की अना है

जाते हैं जिधर लोग उधर क्यूँ नहीं जाते

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In Hindi By Famous Poet Shahid Kamal. is written by Shahid Kamal. Complete Poem in Hindi by Shahid Kamal. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.