चश्म-ए-ख़ुश-आब की तमसील में रहने वाले
चश्म-ए-ख़ुश-आब की तमसील में रहने वाले
हम परिंदे हैं इसी झील में रहने वाले
हम को रास आती नहीं कूचा-ए-जानाँ की हवा
हम हैं अल्फ़ाज़ की तहवील में रहने वाले
कितने आशोब गज़ीदा से नज़र आते हैं
उसरत-ए-ख़ाना-ए-तकमील में रहने वाले
अपने अल्फ़ाज़ से तज्सीम करूँगा तुझ को
मुझ पे वा हो मेरी तख़ईल में रहने वाले
वुसअ'त-ए-ज़ख़्म का तुझ को भी नहीं अंदाज़ा
ऐ मिरे ज़ख़्म की तावील में रहने वाले
किस लिए करते हो तुम हर्फ़-ए-मलामत से गुरेज़
हम कहाँ सोहबत-ए-जिब्रील में रहने वाले
मेरे लफ़्ज़ों को भी देते हैं वो आयात-ए-शिफ़ा
हाँ वही हुर्मत-ए-इंजील में रहने वाले
जा तुझे 'शाहिद' ज़ी-जाह ने आज़ाद किया
ऐ मिरे हुक्म की तामील में रहने वाले
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