Ghazals of Shahid Kamal (page 1)

Ghazals of Shahid Kamal (page 1)
नामशाहिद कमाल
अंग्रेज़ी नामShahid Kamal
जन्म की तारीख1982

ज़ख़्म-ए-जिगर को दस्त-ए-जराहत से पूछिए

ये ज़रूरत है तो फिर इस को ज़रूरत से न देख

सोचता है किस लिए तू मेरे यार दे मुझे

सोच रहा है इतना क्यूँ ऐ दस्त-ए-बे-ताख़ीर निकाल

शिकस्ता जिस्म दरीदा जबीन की जानिब

सब हैं मसरूफ़ किसी को यहाँ फ़ुर्सत नहीं है

फिर आज दर्द से रौशन हुआ है सीना-ए-ख़्वाब

नन्हा सा दिया है कि तह-ए-आब है रौशन

में क्या हूँ कौन हूँ ये बताने से मैं रहा

मक़्तल में चमकती हुई तलवार थे हम लोग

मैं कहाँ तक तुझे सफ़ाई दूँ

कूज़ा-ए-दर्द में ख़ुशियों के समुंदर रख दे

कुंज-ए-दिल में है जो मलाल उछाल

कुछ यक़ीं सा गुमान सा कुछ है

कूचा-ए-संग-ए-मलामत के सब आसार के साथ

ख़ुशियाँ मत दे मुझ को दर्द-ओ-कैफ़ की दौलत दे साईं

ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला

ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला

जो मिरी पुश्त में पैवस्त है उस तीर को देख

जो इस ज़मीन पे रहते थे आसमान से लोग

जो इस चमन में ये गुल सर्व-ओ-यासमन के हैं

इस अरसा-ए-महशर से गुज़र क्यूँ नहीं जाते

इब्तिदा से मैं इंतिहा का हूँ

हवा की डोर में टूटे हुए तारे पिरोती है

हर्फ़-ए-कुन शह-ए-रग-ए-हू में गुम है

हमें ख़बर भी नहीं यार खींचता है कोई

ग़मों की रात है और इतनी मुख़्तसर भी नहीं

फ़िक्र-ए-ईजाद में हूँ खोल नया दर कोई

धूप के ज़र्द जज़ीरों में नुमू ज़िंदा है

दश्त-ए-वहशत को फिर आबाद करूँगा इक दिन

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