शाहिद कमाल कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शाहिद कमाल
नाम | शाहिद कमाल |
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अंग्रेज़ी नाम | Shahid Kamal |
जन्म की तारीख | 1982 |
ज़ख़्म-ए-जिगर को दस्त-ए-जराहत से पूछिए
ये ज़रूरत है तो फिर इस को ज़रूरत से न देख
सोचता है किस लिए तू मेरे यार दे मुझे
सोच रहा है इतना क्यूँ ऐ दस्त-ए-बे-ताख़ीर निकाल
शिकस्ता जिस्म दरीदा जबीन की जानिब
सब हैं मसरूफ़ किसी को यहाँ फ़ुर्सत नहीं है
फिर आज दर्द से रौशन हुआ है सीना-ए-ख़्वाब
नन्हा सा दिया है कि तह-ए-आब है रौशन
में क्या हूँ कौन हूँ ये बताने से मैं रहा
मक़्तल में चमकती हुई तलवार थे हम लोग
मैं कहाँ तक तुझे सफ़ाई दूँ
कूज़ा-ए-दर्द में ख़ुशियों के समुंदर रख दे
कुंज-ए-दिल में है जो मलाल उछाल
कुछ यक़ीं सा गुमान सा कुछ है
कूचा-ए-संग-ए-मलामत के सब आसार के साथ
ख़ुशियाँ मत दे मुझ को दर्द-ओ-कैफ़ की दौलत दे साईं
ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला
ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला
जो मिरी पुश्त में पैवस्त है उस तीर को देख
जो इस ज़मीन पे रहते थे आसमान से लोग
जो इस चमन में ये गुल सर्व-ओ-यासमन के हैं
इस अरसा-ए-महशर से गुज़र क्यूँ नहीं जाते
इब्तिदा से मैं इंतिहा का हूँ
हवा की डोर में टूटे हुए तारे पिरोती है
हर्फ़-ए-कुन शह-ए-रग-ए-हू में गुम है
हमें ख़बर भी नहीं यार खींचता है कोई
ग़मों की रात है और इतनी मुख़्तसर भी नहीं
फ़िक्र-ए-ईजाद में हूँ खोल नया दर कोई
धूप के ज़र्द जज़ीरों में नुमू ज़िंदा है
दश्त-ए-वहशत को फिर आबाद करूँगा इक दिन