सियाह सफ़्हा-ए-हस्ती पे मैं उभर न सका

सियाह सफ़्हा-ए-हस्ती पे मैं उभर न सका

मिरी शबीह में कोई भी रंग भर न सका

हर एक राह थी मसदूद कोहसारों में

बुलंदियों से किसी तरह मैं उतर न सका

बुरे दिनों का मैं इक ख़ौफ़नाक मंज़र हूँ

मुझे कभी भी कोई शख़्स याद कर न सका

नुकीले ख़ार थे शीशे थे संग-रेज़े थे

रह-ए-हयात से बे-दाग़ मैं गुज़र न सका

पुकारता रहा मुझ को कोई मगर 'शाहिद'

मैं मौज-ए-बहर था पल भर कहीं ठहर न सका

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In Hindi By Famous Poet Shahid Kaleem. is written by Shahid Kaleem. Complete Poem in Hindi by Shahid Kaleem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.