लहू का दाग़ न था ज़ख़्म का निशान न था
लहू का दाग़ न था ज़ख़्म का निशान न था
वो मर चुका था किसी को मगर गुमान न था
मैं चल पड़ा था कहीं अजनबी दिशाओं में
हवा का ज़ोर था कश्ती में बादबान न था
मैं उस मकान में मुद्दत से क़ैद था कि जहाँ
कोई ज़मीन न थी कोई आसमान न था
मिरी शिकस्त मिरी फ़तह कुछ नहीं यानी
वो हादसा था कोई मेरा इम्तिहान न था
तुम्हारे दौर में हर आदमी है बुत की तरह
हमारे अहद में पत्थर भी बे-ज़बान न था
किसी खंडर में ही मुझ को दिया जलाना पड़ा
चमकते शहर में मेरा कोई मकान न था
मैं सब्ज़ रंग का चश्मा पहन चुका था 'कलीम'
मिरी निगाह में मंज़र लहूलुहान न था
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