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जलती बुझती हुई शम्ओं का धुआँ रहता है - शाहिद कलीम कविता - Darsaal

जलती बुझती हुई शम्ओं का धुआँ रहता है

जलती बुझती हुई शम्ओं का धुआँ रहता है

कुछ अजब धुँद के आलम में मकाँ रहता है

ख़ुश्क दरिया है न दरिया पे है पहरा लेकिन

हर तरफ़ प्यास का ख़ूँ-रंग समाँ रहता है

इस भरे शहर में मुश्किल है तजस्सुस उस का

किस को फ़ुर्सत जो कहे कौन कहाँ रहता है

भूलना सहल नहीं वक़्त की संगीनी का

ज़ख़्म भरता है मगर उस का निशाँ रहता है

मेरी आँखों में हैं सद-रंग मनाज़िर लेकिन

कुछ है मादूम जो एहसास-ए-ज़ियाँ रहता है

नींद आती है कहाँ उजड़े मकाँ में 'शाहिद'

कोई आसेब का हर रात गुमाँ रहता है

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In Hindi By Famous Poet Shahid Kaleem. is written by Shahid Kaleem. Complete Poem in Hindi by Shahid Kaleem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.