Ghazals of Shahid Kaleem
नाम | शाहिद कलीम |
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अंग्रेज़ी नाम | Shahid Kaleem |
तिरी थकी हुई आँखों में ख़्वाब था कि नहीं
सियाह सफ़्हा-ए-हस्ती पे मैं उभर न सका
मैं इंतिहा-ए-यास में तन्हा खड़ा रहा
लहू का दाग़ न था ज़ख़्म का निशान न था
कोरे काग़ज़ पे मिरा नक़्श उतारे कोई
जो देखता है मुझे आईने के अंदर से
जलती बुझती हुई शम्ओं का धुआँ रहता है
अंधेरे घर में चराग़ों से कुछ न काम लिया