ज़िंदगी इक आँसुओं का जाम था
पी गए कुछ और कुछ छलका गए
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इस सोच में ज़िंदगी बिता दी
ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी
मय-ख़ाने की बात न कर वाइज़ मुझ से
बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
कुछ देर काली रात के पहलू में लेट के
पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ
आप के दम से तो दुनिया का भरम है क़ाएम
हर आइने में बदन अपना बे-लिबास हुआ
क्या फ़र्ज़ है ये जिस्म के ज़िंदाँ में सज़ा दे
गिरने दो तुम मुझे मिरा साग़र संभाल लो
तेरा कूचा तिरा दर तेरी गली काफ़ी है