तेरा कूचा तिरा दर तेरी गली काफ़ी है
बे-ठिकानों को ठिकाने की ज़रूरत क्या है
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आप के दम से तो दुनिया का भरम है क़ाएम
ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी
इस सोच में ज़िंदगी बिता दी
पुकारती है जो तुझ को तिरी सदा ही न हो
ठुकराओ अब कि प्यार करो मैं नशे में हूँ
कुछ देर काली रात के पहलू में लेट के
पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ
इतनी जल्दी तो बदलते नहीं होंगे चेहरे
कुछ तो हो रात की सरहद में उतरने की सज़ा
काँटों को पिला के ख़ून अपना
हर आइने में बदन अपना बे-लिबास हुआ