शहर में गलियों गलियों जिस का चर्चा है
वो अफ़्साना तेरा भी है मेरा भी
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बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
काँटों को पिला के ख़ून अपना
तबाह कर गई पक्के मकान की ख़्वाहिश
वो भी धरती पे उतारी हुई मख़्लूक़ ही है
आप के दम से तो दुनिया का भरम है क़ाएम
ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी
कौन है अपना कौन पराया क्या सोचें
ज़िंदगी इक आँसुओं का जाम था
कर्ब चेहरे से मह-ओ-साल का धोया जाए
पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ
ज़मीं पे चल न सका आसमान से भी गया
रूह को क़ैद किए जिस्म के हालों में रहे