पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ
तक़दीर को अपनी रो रहा हूँ
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ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी
आप के दम से तो दुनिया का भरम है क़ाएम
तबाह कर गई पक्के मकान की ख़्वाहिश
तेरा कूचा तिरा दर तेरी गली काफ़ी है
इस सोच में ज़िंदगी बिता दी
रूह को क़ैद किए जिस्म के हालों में रहे
ज़मीं पे चल न सका आसमान से भी गया
पुकारती है जो तुझ को तिरी सदा ही न हो
क्या फ़र्ज़ है ये जिस्म के ज़िंदाँ में सज़ा दे
मय-ख़ाने की बात न कर वाइज़ मुझ से
बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है