मय-ख़ाने की बात न कर वाइज़ मुझ से
आना जाना तेरा भी है मेरा भी
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काँटों को पिला के ख़ून अपना
अंदर का सुकूत कह रहा है
ज़मीं पे चल न सका आसमान से भी गया
तुम से मिलते ही बिछड़ने के वसीले हो गए
कुछ तो हो रात की सरहद में उतरने की सज़ा
आप के दम से तो दुनिया का भरम है क़ाएम
गिरने दो तुम मुझे मिरा साग़र संभाल लो
पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ
शहर में गलियों गलियों जिस का चर्चा है
ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी
बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है