कौन है अपना कौन पराया क्या सोचें
छोड़ ज़माना तेरा भी है मेरा भी
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ज़िंदगी इक आँसुओं का जाम था
अंदर का सुकूत कह रहा है
कुछ देर काली रात के पहलू में लेट के
रूह को क़ैद किए जिस्म के हालों में रहे
तुम से मिलते ही बिछड़ने के वसीले हो गए
ज़मीं पे चल न सका आसमान से भी गया
गिरने दो तुम मुझे मिरा साग़र संभाल लो
बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
तेरा कूचा तिरा दर तेरी गली काफ़ी है
कुछ तो हो रात की सरहद में उतरने की सज़ा
काँटों को पिला के ख़ून अपना
ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी