इतनी जल्दी तो बदलते नहीं होंगे चेहरे
गर्द-आलूद है आईने को धोया जाए
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Gulzar
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कौन है अपना कौन पराया क्या सोचें
बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
ज़मीं पे चल न सका आसमान से भी गया
ठुकराओ अब कि प्यार करो मैं नशे में हूँ
वो भी धरती पे उतारी हुई मख़्लूक़ ही है
मय-ख़ाने की बात न कर वाइज़ मुझ से
तबाह कर गई पक्के मकान की ख़्वाहिश
कुछ तो हो रात की सरहद में उतरने की सज़ा
आप के दम से तो दुनिया का भरम है क़ाएम
काँटों को पिला के ख़ून अपना
क्या फ़र्ज़ है ये जिस्म के ज़िंदाँ में सज़ा दे