बे-सबब बात बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
हम ख़फ़ा कब थे मनाने की ज़रूरत क्या है
Wasi Shah
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Rahat Indori
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Gulzar
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तुम से मिलते ही बिछड़ने के वसीले हो गए
अंदर का सुकूत कह रहा है
ज़िंदगी इक आँसुओं का जाम था
तबाह कर गई पक्के मकान की ख़्वाहिश
ठुकराओ अब कि प्यार करो मैं नशे में हूँ
काँटों को पिला के ख़ून अपना
कुछ तो हो रात की सरहद में उतरने की सज़ा
ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी
रेत की लहरों से दरिया की रवानी माँगे
कर्ब चेहरे से मह-ओ-साल का धोया जाए
रूह को क़ैद किए जिस्म के हालों में रहे